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सरदार पूर्ण सिंह |
सरदार पूर्णसिंह का जीवन परिचय
सरदार पूर्णसिंह का जीवन परिचय
सन्त ह्रदय साहित्यकार, सांस्कृतिक महापुरूष एवं राष्ट्रीय जागरण के आलोक-स्तम्भ सरदार पूर्णसिंह का जन्म एबटाबाद जिले के एक सम्पन्न एवं प्रभावशाली परिवार में सन् लाहौर से उत्तीर्ण की। इस परीक्षा के पश्चात वे रसायनशास्त्र के अध्ययन के लिए जापान गए और वहाँ तीन वर्ष तक ‘इम्पीरियल यूनिवर्सिटी’ में अध्ययन किया। यहीं उनकी भेट स्वामी रामतीर्थ से हुई और वे संन्यासी का-सा जीवन व्यतीत करने लगे। इसके पश्चात् विचारों में परिवर्तन होने पर इन्होंने गृहस्थ धर्म स्वीकार किया और देहरादून के ‘फॉरेस्ट कॉलेज’ अध्यापक हो गए। यहीं से ‘अध्यापक’ शब्द उनके नाम के साथ जुड़ गया। जीवन के अन्तिम दिनों में अध्यापक पूर्णसिंह ने खेती भी की। मार्च, सन् 1931 ई0 में हिन्दी का यह प्रचण्ड सूर्य अपनी प्रखर रश्मियों का समेटकर सदैव के लिए अस्त हो गया।
सरदार पूर्णसिंह का साहित्यिक परिचय
अध्यापक पूर्णसिंह भावात्मक निबन्धों के जन्मदाता और उत्कृष्ट गद्यकार थे। पूर्णसिंहजी विराट्-ह्रदय साहित्यकार थे। इनके ह्रदय में भारतीयता की विचारधारा कूट-कूटकर भरी हुई थी। इनका सम्पूर्ण साहित्य भारतीय संस्कृति और सभ्यता से प्रेरित होकर लिखा गया है।
सरदार पूर्णसिंह की कृतियाँ
सरदार पूर्णसिंह के हिन्दी में कुल छह निबन्ध उपलब्ध है-
(1) सच्ची वीरता,
(2) आचरण की सभ्यता,
(3) मजदूरी और प्रेम,
(4) अमेरिका का मस्त योगी वॉल्ट हिटमैन,
(5) कन्यादान,
(6) पवित्रता।
सरदार पूर्णसिंह की भाषा-शैली
अध्यापक पूर्णसिंह की भाषा-शैली की विशेषताओं के दर्शन निम्नलिखित रूपों में होते है-
सरदार पूर्णसिंह की भाषागत विशेताएँ
मात्र छह निबन्धों के लेखक होते हुए भी सरदार पूणसिंह हिन्दी-साहित्यकारों की प्रथम पंक्ति में गिने जाते है। इसका श्रेय विशष रूप से उनके भाषा सौष्ठव को दिया जाता है। उनकी भाषागत विशेषताएँ इस प्रकार है-
(1) विषय को मूर्तिमान करने की अद्भुत क्षमता
पूर्णसिंह की भाषा में विषय को मूर्तिमान करने की अद्भुत क्षमता है। एक सफल चित्रकार की भाँति वह शब्दों की सहायता से एक परिपूर्ण चित्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर देते है। विचारो की दृष्टि से वह पूर्ण भारतीय है। उन्हें कृषकों से प्रगाढ़ प्रेम था। देश की उन्नति की चिन्ता उनकी चिरसंगिनी रही और मानव की प्रतिष्ठा के लिए उनका अन्तःकरण आजीवन व्याकुल रहा।
(2) व्यावहारिक भाषा का प्रयोग
उनकी भाषा शुद्ध खड़ीबोली है, किन्तु उसमें संस्कृत शब्दों के साथ-साथ फारसी और अंग्रजी के शब्द भी यथास्थान प्रयुक्त हुए है। उन्हें किसी शब्द-विशेष से मोह नहीं है। वह तो उसी शब्द का प्रयोग कर देते है, जो शैली के प्रवाह में स्वाभाविक रूप से व्यक्त हो जाता है।
सरदार पूर्णसिंह की शैलीगत विशेषताएँ
(1) भावात्मक शैली
अध्यापक पूर्णसिंह ने प्रायः भावात्मक निबन्ध लिखे है, इसीलिए उनकी शैली में भावात्मकता और काव्यात्मकता स्थान-स्थान पर मिलती है। यहाँ तक कि इनके विचार भी भावुकता में लिपटे हुए ही व्यक्त होते है।
(2) वर्णनात्मकता (वर्णानात्मक शैली)
पूर्णसिंहजी द्वारा प्रयुक्त वर्णनात्मकत शैली अपेक्षाकृत अधिक सुबोध और सरल है। इसमें वाक्य छोटे-छोटे है। विषय का चित्रण बड़ी मार्मिकता के साथ हुआ है। यह शैली अधिक प्रवाहमयी और ह्रदयग्राहिणी भी है
(3) विचारात्मकता (विचारात्मक शैली)
विषय की गम्भीरता क साथ आपकी शैली में विचारात्मकता का गुण भी देखने को मिलता है। ऐसे स्थानों पर सस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोंग हुआ है और वाक्य लम्बे हो गए है।
(4) सूत्रात्मकता (सूत्रात्मक शैली)
अपने कथन को स्पष्ट करने से पहले अध्यापक पूर्णसिंह उसे सूत्र रूप में कह देते है और फिर उसकी व्याख्या करते है। उनके ये सूत्र-वाक्य सूक्तियों का-सा आनन्द प्रदान करते है। जैसे-‘‘ आचरण की सभ्यतामय भाषा सदा मौन रहती है। प्रेम की भाषा शब्दरहित है, आचरण भी हिमालय की तरह एक ऊँचे कलशवाला मन्दिर है।’’
(5) व्यग्य ओर विनोद (व्यंग्यात्मक शैली)
पूर्णसिंहजी के निबन्धों के विषय प्रायः गम्भीर है, फिर भी उनके निबन्धों मे हास्य और व्यंग्य का पूट आ गया है। ‘ आचरण की सभ्यता’ निबन्ध में उन्होंने लिखा है- ‘‘ पुस्तकों में लिखे हुए नुसखो से तो और भी अधिक बदहजमी हो जाती है। सारे वेद और शास्त्र भी यदि घोलकर पी लिए जाएँ तो भी आदर्श आचरण की प्राप्ति नहीं होती
(6) अन्य विशेषताएँ
पूर्णसिंहजी की शैली में दो अन्य विशेषताएँ है-
(क) वे अपनी शैली में अपनी भावनाओं का चित्रण रहस्यमय ढ़ग से करते है इसके लिए उन्होने शब्दों की लाक्षणिक शक्ति का आश्रय लिया है, परिणामस्वरूप उनकी शैली भावों का भण्डार बन गई है।
(ख) वे अपनी शैली में कोई साधारण वाक्य लिखकर, उससे मिलते-जुलते कई वाक्य- उपस्थित कर देते है। परिणामस्वरूप उनकी शैली अधिक मनोरम हो गई है।
सरदार पूर्णसिंह का साहित्य में स्थान
मात्र छह निबन्ध लिखकर ही सरदार पूर्णसिंह हिन्दी निबन्धकारों की प्रथम पंक्ति में उच्चस्थान पर सुशोभित है। वे सच्चे अर्थो में एक साहित्यिक निबन्धकार थे। पूर्णसिंह हिन्दी व पंजाबी भाषा के पाठकों मे समान रूप से लोकप्रिय हुए। अपने महान् दार्शनिक व्यक्तित्व एवं विलक्षण कृतिव के लिए वे सदैव स्मरणीय बने रहेंगे। उनके निधन से हिन्दी एवं पंजाबी साहित्य की जो क्षति हुई, उसकी पूर्ति असम्भव है। डॉ0 राजेश्वरप्रसाद चतुर्वेदी के अनुसार, ‘‘ हिन्दी साहित्य के निबन्धकारो में अध्यापक पूर्णसिंह अन्यतम है। उनका न तो कोई प्रतिरूप हुआ ओर न उततराधिकारी ही। समग्रता में वे आज भी अजेय है।’’
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