एकांकी के प्रकार
एकांकी के प्रकार
विद्वानों ने 'एकांकी' के अनेक भेदो का उल्लेख किया है, परन्तु साहित्य की दृस्टि से रचना प्रकार का वर्गीकरण मुख्यतः तीन दृस्टियो से किया जाता है -
(अ) विषय की दृस्टि से, (ब) प्रतिपाद्य की दृस्टि से, (स) शैली अथवा शिल्प की दृस्टि से।
(अ) विषय की दृस्टि से एकांकी को दस कोटियों में बाँटा जा सकता है -
१.सामाजिक एकांकी
सामाजिक समस्याओ को आधार बनाकर सामाजिक एकांकी की रचना की जाती है। सामाजिक एकांकी का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। सामाजिक जीवन के विविध पक्ष, यथा-प्रेम-प्रवाह, वर्ग-संघर्ष, पीढ़ी-संघर्ष तथा अस्पृश्यता इसके अंतर्गत आते है। जैसे-'फैसला' ( विनोद रस्तोगी ), 'लश्मी का स्वागत ' (उपेंद्रनाथ अश्क )
२. ऐतिहासिक एकांकी
इतिहास अथवा ऐतिहासिक पृष्ठ्भूमि के आधार पर लिखे गये एकांकी ऐतिहासिक एकांकी होते है। जैसे-'दीपदान' (डॉ रामकुमार वर्मा )
३. मनोवैज्ञानिक एकांकी
मनोविज्ञानं के आधार पर रचित एकांकी मनोवैज्ञानिक एकांकी होते है। जैसे-'मकड़ी का जाला' ( जगदीशचन्द्र माथुर )
४. राजनैतिक एकांकी
किसी राजनैतिक गतिविधि पर प्रकाश डालनेवाले एकांकी राजनैतिक एकांकी होते है। जैसे- 'पिशाचो का नाच' ( उदयशंकर भट्ट , सीमा-रेखा' विष्णु प्रभाकर
५. चारित्रिक एकांकी
जिन एकांकियों का मूलोद्देश्य किसी चरित्र-चित्रण का सौंदर्य या असौंदर्य अनुभूत करना होता है। जैसे-'उत्सर्ग' डॉ रामकुमार वर्मा
६. पौराणिक एकांकी
पुराणों पर आधारित कथावस्तु को लेकर लिखे गए एकांकी पौराणिक एकांकी होते है। जैसे- 'मुद्रिका' ( सद्गुरूशरण अवस्थी ), 'राजरानी सीता' डॉ रामकुमार वर्मा
७. सांस्कृतिक एकांकी
सांस्कृतिक समस्या पर आधारित एकांकी सांस्कृतिक एकांकी होते है। जैसे- 'प्रतिशोध' (डॉ रामकुमार वर्मा ), 'सच्चा धर्म' (सेठ गोविंददास)
८. आंचलिक एकांकी
किसी अंचल-विशेष की घटना पर आधारित वहा की लोकभाषा,रीति-व्यवहार, रहन-सहन, भूगोल आदि का चित्रण आंचलिक एकांकी में किया जाता है।
९. दार्शनिक एकांकी
दार्शनिक विषयो पर आधारित दार्शनिक एकांकी है। यथा-उदयशंकर भट्ट, लश्मीनारायण मिश्र दार्शनिक एकांकीकार है।
१०. तथ्यपरक एकांकी
एकांकीकार किसी विशेष सन्देश अथवा उद्देश्य पर बल न देकर किसी प्रसंग का नाटकीय चित्र अंकित करके प्रभाव अथवा निष्कर्ष ग्रहण करने का दायित्व पाठक या दर्शक पर छोड़ देता है। जैसे- 'मानव-मन' (सेठ गोविंददास)
(ब) प्रतिपाद्य की दृस्टि से
प्रतिपाद्य की दृस्टि से एकांकी के अनेक भेदो की कल्पना की जा सकती है, यद्यपि इनकी कोई निश्चित सीमा नहीं निर्धारित की जा सकती। इसके अंतर्गत समस्यामूलक एकांकी, हास्य एकांकी, विचारपरक एकांकी और वैज्ञानिक एकांकी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
समस्यामूलक एकांकी में वैयक्तिक अथवा सामाजिक समस्या से सम्बंधित उलझनों के चित्रण तथा कही-कही उसके सुलझने का संकेत देते हुए एकांकी का गठन होता है। आज के समस्या-संकुल जीवन में ऐसे एकांकी बड़े प्रभावपूर्ण और भावोत्तेजक सिद्ध होते है।
हास्य एकांकी एकांकी में हास्य-विनोद का पूत रहता है, एकांकीकार ऐसे घटना-चक्र तथा ऐसे विचित्र मनमौजी पात्रो की सृस्टि करता है , जिससे संवाद पाठक और दर्शक के चित्त में एक प्रकार की गुदगुदी जागते हुए उसे हँसाते चलते है। मनोरंजन और नयी स्फूर्ति के प्रेरक ऐसे एकांकी बड़े लोकप्रिय होते है। इनमे प्रायः सरल, सहज और उत्तेजनयुक्त वातावरण का निर्वाह होता है।
व्यंग्य एकांकी में हास्य- विनोद के पुट के साथ-साथ व्यक्ति, समाज अथवा परिवार की किसी विषमता अथवा विडंबना के प्रति तीखा और चुटीला व्यंग्य होता है। एक-एक घटना-व्यापर और संवाद का एक-एक शब्द बाह्य आवरण के पीछे छिपकर झांकती हुई अनेक ग्रंथियों और प्रतिक्रियाओं का रोचक तथा सांकेतिक पर्दाफाश करता चलता है। ऐसे एकांकियों की भाषा-शैलियों दुहरे अर्थ की व्यंजना करती हु पग-पग पर एक नए रहस्य का उद्घाटन करती चलती है।
विचारात्मक एकांकी किसी विशेष बौद्धिक दृश्टिकोण की अभिव्यक्ति करता है। इसके पात्र अपने निजी विचारो को नाटकीय रोचकता के साथ व्यक्त करते हुए विशेष समाधान की ओर संकेत करते है। वैज्ञानिक एकांकी आज के विज्ञानं-जगत की किसी पहेली को लेकर प्रयोगशाला के वातावरण की झलक संवादों के माध्यम से देते है तथा व्यवहार-जगत में विज्ञानं की चर्चा को मनोरंजक रूप प्रदान करते है डॉ धर्मवीर भारती का 'सृस्टि का आख़िरी आदमी' इसी प्रकार का एकांकी है।
(स) शैली अथवा शिल्प की डरती से
शैली अथवा शिल्प की डरती से एकांकी को चार कोटियों में बांटा जा सकता है-
(I) स्वप्न रूपक (फैंटेसी ) ((ii) प्रहसन (III) काव्य एकांकी (iv) रेडियो-रूपक।
स्वप्न रूपक अर्थात अतिकल्पना प्रधान एकांकी में एकांकीकार बहुत दूर तक अपनी कल्पना का सहारा लेता है। डॉ रामकुमार वर्मा का ' बादल की मृत्यु' ऐसा ही एकांकी है। प्रहसन में व्यंग्यात्मक ढंग से व्यंग-विनोद और परिहास की सृस्टि की जाती है।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र का प्रहसन 'अंधेर नगरी' प्रसिद्ध है। काव्य एकांकी का माध्यम काव्य होता है। वह छंदबद्ध,तुकांत और अतुकांत रूप में हो सकता है। काव्य एकांकी में आवश्यक है कि उसमे नाटकीयता और कवित्त दोनों हो। उदयशंकर भट्ट का 'तारा', भगवतीचरण वर्मा का 'कर्ण ' और सुमित्रानंदन पंत 'रजत शिखर' काव्य एकांकी है।
रेडियो-रूपक आज का बहुत ही लोकप्रिय प्रकार है। इन एकांकियों की रचना आकाशवाणी पर प्रसारण के लिए की जाती है। इनमे ध्वनि-विशेष के द्वारा अभिनय और क्रिया-व्यापारों का निर्वाह होता है। यहाँ पर श्रोता आँख का काम कान से लेते है। विशेष प्रकार की ध्वनियों को सुनकर वे विशिष्ट दृश्य एवं भाव की कल्पना करके इन एकांकियों है।
रचना-विधान के अनुरूप एकांकी के एक दृश्यीय, एक पात्रीय तथा अनेक पात्रीय जैसे भेद भी संभव है। एक पात्रीय एकांकी वे है जिनमे केवल एक ही पात्र अपनी विशिष्ट कलां से कई पात्रो के संवाद एवं क्रिया-व्यापारों का अभिनय करने में समर्थ होता है। मुख्यतः रेडियो-रूपक के दो भेद होते है- ध्वनि रूपक और वृत्त रूपक। ध्वनि रूपक की कथावस्तु वृत्त रूपक की कथावस्तु से भिन्न होती है। ध्वनि रूपक में केवल ध्वनि का महत्त्व होता है तथा वृत्त रूपक संवाद के बीच-बीच में बहुत-सा वर्णन सूत्रधार के माध्यम से दिया जाता है।
एकांकी के उपयुक्त प्रकारो के अतिरिक्त अन्य भेद-विभेद व्यक्तिगत और सामाजिक रुचि के अनुरूप किये जा सकते है। वैषम्य एकांकी, विद्रूपएकांकी, फीचर, मालावत एकांकी, दुःखान्त एकांकी, मेलोड्रमैटिक (अति नाटकीय) एकांकी, व्याख्यात्मक एकांकी, आदर्शकमूलक एकांकी, अनुभूतिमय एकांकी, यथार्थवादी एकांकी, कलावादी एकांकी, प्रगति एकांकी आदि अनेक प्रकार की चर्चा भी की जा सकती है।
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