निबंध किसे कहते है
अच्छी तरह बंधा हुआ। संक्षेप में निबंध उस गद्य-रचना को कहते है, जिसमे लेखक किसी विषय पर अपने विचारो को सीमित,सजीव,स्वच्छंद और सुव्यवस्थित रूप से व्यक्त करता है। आलोचकों ने निबंध को गद्य की कसौटी कहा है। निबंध में लेखक किसी भी विषय का पूर्ण विवेचन,विश्लेषण,परिक्षण,व्याख्या एवं मूल्यांकन करता है।
वह विषय का निर्वाह अपनी इच्छानुसार करता है, जिसमे वह स्वतन्त्र रहता है। निबंध आत्मपरक होता है तथा इसमें आत्मीयता और भावात्मक के साथ-साथ विचारो की तर्कपूर्ण अभिव्यक्ति होती है। आधुनिक हिंदी निबंध संस्कृत के निबंध से पूर्णतया भिन्न है तथा अंग्रेजी के 'एसे 'के अधिक निकट है।
यद्यपि प्राचीन संस्कृत और प्राकृत साहित्य में निबंध तथा प्रबंध शब्दों का प्रयोग चिरकाल से मिलता है ,पर जिस अर्थ में आजकल इन शब्दों का प्रयोग हो रहा है ,इस अर्थ में पहले उसका प्रचलन कभी न था। इसलिए निबंध-लेखन की परम्परा का आरम्भ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से ही मानना चाहिए। अतः कहा जा सकता है कि भारतेन्दु-युग में निबंध का आविर्भाव हुआ, द्विवदी -युग में इसका परिमार्जन हुआ और आधुनिक युग में इसमें प्रौढ़ता आ गयी।
विषय एवं शैली की दृष्टि से निबंध के भेद है -
1 विचारत्मक निबंध
2 भावात्मक निबंध
3 वर्णात्मक निबंध
ऐसे निबंधों में किसी घटना,दृश्य अथवा वस्तु का विस्तार से वर्णन किया जाता है अर्थात वस्तु, स्थान, व्यक्ति, दृश्य आदि के निरीक्षण के आधार पर आकर्षण, सरस एवं रमणीय वर्णन जिन निबंधों में होता है, उन्हें वर्णात्मक निबंध कहा जाता है।
वर्णात्मक निबंध शैली दो प्रकार की होती है।
एक में यथार्थ वर्णन तथा दूसरी में अलंकृत वर्णन होता है। यथार्थ वर्णन सूक्ष्म निरीक्षण एवं निजी अनुभूति के आधार पर होता है तथा अलंकृत वर्णन में कल्पना का प्रयोग होता है। ऐसे निबंधों में चित्रात्मक, रोचकता, कौतुहल और मानसिक प्रत्यक्षिकरण कराने की क्षमता होती है।
4 विवरणात्मक निबंध -
ऐतिहासिक तथा सामाजिक घटनाओ,स्थानों,दृश्यों,यात्राओं एवं जीवन के अन्य कार्य-कलापो का विवरण जिन निबंधों में दिया जाता है, उन्हें विवरणात्मक निबंध कहते है। इनमे आख्यात्मकता का पपुट रहता है तथा विषय-वस्तु के प्रत्येक ब्यौरे का सुसम्बद्ध विवरण रोचक, हृदयग्राही और क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
इनकी शैली सरल,आकर्षक,भावानुकूल,व्यावहारिक एवं चित्रात्मक होती है। प्रस्तुत संकलन में श्रीराम शर्मा का 'स्मृति' तथा 'काका कालेलकर का 'निष्ठामूर्ति कस्तूरबा' इसी प्रकार के निबंध है।
द्विवेदी-युग के उल्लेखनीय निबंधकारों के नाम इस प्रकार है - आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी,बालमुकुंद गुप्त,माधवप्रसाद मिश्र, सरदार पूर्णसिंह,मिश्रबन्धु, गोपालराम गहमरी, चंद्रधर शर्मा गुलेरी,श्यामसुंदर दास, रामदास गौड़, गौरीशंकर हीराचंद ओझा, आयोध्यासिंघ उपाध्याय 'हरिऔध', रामचंद्र शुक्ल, डा० पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल, पदमसिंह शर्मा आदि। बालमुकुंद गुप्त भारतेन्दु-युग और द्विवेदी के मध्य की कड़ी थे।
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